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बागड़ी मुहावरे 1-60

1. जलमेड़ै नै पोतड़िया होयां सरसी।
अर्थ: जो जन्मा है उसके लिये कोई ना कोई व्यवस्था होगी।

बागड़ी कैबत 1-30

1. अक्ल बिना ऊँठ उभाणा फिरै
अर्थ: मूर्ख व्यक्ति साधन होते हुए भी उनका उपयोग नहीँ कर पाते।

म्हानै अब के बचाले म्हारी मा बटाऊ आयो लेवण नै

म्हानै अब के बचाले म्हारी मा बटाऊ आयो लेवण नै।
आठ कोठड़ी नो दरवाजा इण काया गै  मांय।

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सासुड़ी ताना मार ओ भाई सागा बीर

सासुड़ी ताना मार ओ भाई सागा बीर -2
मं तो चार बजै सी जागी इतै मोटेड़ी जिठाणी आगी।
म्हाने मुका स्युं धमकागी  रे घायल  करो सरीर॥

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साधो भाई

साधो भाई -2
इण झगड़ गो सतगुरू साखी कोई संत सुजाणा  ।
कह बनानाथ सुणो भाई साधो झगड़ा गा किया बया।।
साधो भाई ओ -2

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क्यूं भटकै ऐ घर मैं पिया तेरा

क्यूं भटकै ऐ घर मैं पिया तेरा।
ग्यान चसम लगाले हीयै फेरा॥ टेर

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ढूंढ लिया ऐ सखी जल थल सारा

ढूंढ लिया ऐ सखी जल थल सारा। 
नहीं मिला मेरा प्रीतम प्यारा॥ टेर

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घोनी गी बेलण

एकर गी बात है, एक बकरी ही। बा भोत खुसी-खुसी आपगै गाम मं रेवंती ही। बा भोत मिलणसार ही।भोत ही घोन्यां बिंगी बेलण ही। बिंगी किऊं ई कोई दुसमणी कोनी ही।

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खुद गी बराबरी दूजां ऊं ना करो

एकर गी बात है, कोई जगळ मं एक कागलो रेवंतो हो, बो भोत राजी हो,क्यूंन क बिंगी बोळी इच्छा कोनी ही। बो आपगी जिंदगी ऊं भोत राजी हो, पण एकर बण जंगळ मं एक

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कल्पना गी जेवड़ी

एकर गी बात है एक बाणियो हो, बिंगै कनै तीन ऊंट हा बानै लेगे बो सहर-सहर घूमतो अर कारोबार करतो हो। एकर गठैई जावतां रात हो गी तो बण सोच्यो कि अराम कर्ल

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