एकर गी बात है, एक बकरी ही। बा भोत खुसी-खुसी आपगै गाम मं रेवंती ही। बा भोत मिलणसार ही।भोत ही घोन्यां बिंगी बेलण ही। बिंगी किऊं ई कोई दुसमणी कोनी ही। बा सगळां ऊं बात कर लेवंती ही अर सगळां नै आपगी बेलण मान लेवंती ही।सारो किं ठीक चालर्यो हो।पण एकर बा घोनी बीमार पड़गी अर ईं कारण बा होळै-होळै कमजोर होण लागगी ईं खातर बा पोरो दिन ही घरै रेवण लागगी। घनी आप खातर जको खाणो घरै भेळौ कर राख्यो हो।अब बो भी मुकण लागग्यो।
एक दिन बिंगी किं घोनी बेलण बिंगो हाल-चाल पूछण बिंगै कनै आयी। जद ऊं बा घोनी भोत राजी होई। बण सोच्यो कि बा आपगी बेलणा कनू किं ओर दिनां गो खाणो मंगवा लेसी। पण बे घोन्यां तो बिऊं मिलण खातर मांई बड़न ऊं ऊं पेलां ई बिंगै घर गै बारै खड़गी अर बिंगै घर मं रखेड़ो बिंगो खाणो घास-फूस खावण लागगी।
ओ देखगे बीं घोनी नै भोत बूरो लाग्यो अर बिनै समझ मं आग्यो कि बण आपगै जीवन मं के गळती करी? अब बा सोचण लागी कि कास हर कोई नै आपगै जीवन गो हंसो अर बेलण बणाण ऊं पेलां बण बानै परख्यो होवंतो, तो आज ईं बिमारी मं आज बिंगी कोई मदत गै खातर कोई तो होवंतो।